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रविवार, 3 मई 2020

गीता सार

भगवद प्राप्ति में ८ प्रकार के विग्ना आते हैं उनसे बचें तो भगवदप्राप्ति सहज हो जाये …-
१ आलस्य : अच्छा काम करने में आलस्य , परमार्थ में ढील करना , जप-ताप में ढील करना , ईश्वर प्राप्ति के साधन में चलो बाद में करेंगे …
२ विलासिता : सम्भोग से १० प्रकार की हानि |
३ प्रसिद्धि की वासना : आदमी को बहिर्मुख केर देती है , प्रसिद्धि की वासना में आदमी न करने जैसे काम केर लेता है …
४  मन , बढ़ाई , इर्ष्या : अपने से जादा कोई सुखी है , अपने से जादा कोई समजदार है अपने से ज्यादा  किसी की प्रसिद्धि है तो उसको देख कर मन में जो इर्ष्या होती है वो भी साधक को नहीं आने देनी चाहिए …
५ अपने में गुरुभाव की स्थापना करना : मै जानकार हूँ , मै बड़ा गुरु हूँ , मै बड़ा श्रेष्ठ हूँ , अपने में गुरु मन बड़ा भाव धारण करना …
६ बाहरी दिखावा : घर का , धन का , सत्ता का , बुद्धिमत्ता का दिखावा ….
७ परदोष चिंतन : किसी के दोष देख कर अपने को दोषी क्यों बनाना
८ संसारी कार्यों की अधिकता : विश्रांति भी छूट जाती है , ध्यान भजन भी छूट जाती है और चित्त को भगवान का आराम पके भगवद रस पाना भियो छुट जाता है ..

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