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गुरुवार, 30 जनवरी 2020

अहिंसा परमो धर्म का पूरा श्लोक क्या है? क्या हैं इस श्लोक का अर्थ

अहिंसा परमो धर्म का पूरा श्लोक क्या है? क्या हैं इस       श्लोक का अर्थ
जैसा की सबको मालूम हैं की भारत के राष्ट्र पिता कहते हैं का एक महत्त्व पूर्ण श्लोक हैं   
“अहिंसा परमो धर्म ”  जिसकी वाहवाही पूरी दुनिया करती हैं। लकिन क्या आप जानते हैं की भारत के राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी ने इस श्लोक को जान बूझकर या अनजाने में अधूरा ही पढ़ा हैं। महात्मा गाँधी ने पूरी दुनिया को यही सन्देश दिया की “अहिंसा परमो धर्म ” यानि अहिंसा से ऊपर कोई भी धर्म नहीं हैं। आईये हम आपको बताते हैं की इस श्लोक की उत्पत्ति कहा से हुई और कैसे हुई। 
       
    
उत्पत्ति – इस श्लोक की उत्पत्ति हमारे श्रेष्ठ भारत के महाकाव्य महाभारत में हुई। जब महाभारत ग्रंथ में पांडवो को 12 वर्षों का वनवास मिलता हैं तो वो अनेक ऋषि-मुनियों के संपर्क में आते हैं जिनसे उन्हें भांति-भांति का ज्ञान मिलता है। इसी अवधि में उनका ऋषि मारकंडेय से भी परिचय होता है। ऋषि मारकंडेय के मुख से उन्हें कौशिक नाम के ब्राह्मण और धर्मनिष्ठ व्याध के बीच के वार्तालाप की बात सुनने को मिलती है। यह श्लोक उसी के अंतर्गत उपलब्ध है
“अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च: ”
इस श्लोक के अनुसार अहिंसा ही मनुष्य का परम धर्म हैं और जब जब धर्म पर आंच आये तो उस धर्म की रक्षा करने के लिए की गई हिंसा उससे भी बड़ा धर्म हैं। यानि हमें हमेशा अहिंसा का मार्ग अपनाना चाहिए लकिन अगर हमारे धर्म पर और राष्ट्र पर कोई आंच आ जाये तो हमें अहिंसा का मार्ग त्याग कर हिंसा का रास्ता अपनाना चाहिए। क्यूंकि वह धर्म की रक्षा की लिए की गई हिंसा ही सबसे बड़ा धर्म हैं। जैसे हम अहिंसा के पुजारी है लकिन अगर कोई हमारे परिवार को कोई हानि पहुंचता हैं तो उसके लिए की गई हिंसा सबसे बड़ा धर्म हैं। वैसा ही हमारे राष्ट्र के लिए हैं।
भारतीय नेताओं ने हमारे महान राष्ट्र भारत के महाकाव्य महाभारत के इस सबसे महत्वपूर्ण श्लोक को लोगों तक पूरा नहीं पहुंचाया है । इसलिए आपको उस अधूरे श्लोक को पूरा जरूर पड़ना चाइये
दुर्भाग्यवश इस श्लोक को कुछ राजनीतिक स्वार्थों के लिए पूरा न बताकर भारत वासियों के साथ छल किया गया। उन्हें पूर्ण श्लोक कभी बताया ही नहीं गया ।

“अहिंसा परमो धर्मः” (यह गलत हे, पूर्ण नहीं हे )
जबकि पूर्ण श्लोक इस तरह से है। “अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च: ”
(अर्थात् यदि अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है और धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उस से भी श्रेष्ठ है)
आपने देखा होगा की हिन्दू भगवान् हमेशा शस्त्र और आशीर्वाद की मुद्रा में होते हैं वो इसलिए हैं क्यूंकि वो निर्दोष को क्षमा करते हैं और पापी को दंड देते हैं

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