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बुधवार, 26 मई 2021

घर मे रहे, सुरक्षित रहे।

 

कोरोना वायरस से बचने के लिए करें ये उपाय     

कोरोना वायरस से बचने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन और कई अन्य रिसर्च संगठनों के द्वारा कुछ खास सेफ्टी टिप्स बताए गए हैं। नीचे जानें ये टिप्स कौन सी हैं और कैसे आप इनकी मदद से कोरोना के संक्रमण से खुद को बचाए रख सकते है कोरोना वायरस धीरे- धीरे महामारी का रूप लेता जा रहा है। पूरी दुनिया में अब तक 3 हजार से भी ज्यादा लोग इसके कारण अपनी जान गंंवा चुके हैं। अब कोरोना ने भारत में अपनी दस्तक दे दी है और अभी तक कुल 8 मामले सामने आ चुके हैं। कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए शोधकर्ताओं और डॉक्टरों ने इससे बचने के लिए कुछ नए टिप्स बताए हैं। इन टिप्स से आपको कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने में मदद मिलेगी।



​​माउथ मास्क 

यह बहुत आम सेफ्टी है लेकिन इसे गंभीरता से लिया जाना बहुत जरुरी है। कई लोगों को माउथ मास्क लगाने में शर्म आती है और असहज महसूस होता है।लेकिन कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए इसे पहनना शुरू कर दें। डॉक्टरों के मुताबिक इससे संक्रमण का खतरा कई गुना तक कम हो जाता है। इसलिए आज ही बाजार से जाकर माउथ मास्क खरीदें और घर से बाहर निकलने के बाद इसे पहनें।

​​छींकने वाले लोगों से बनाएं दूरीसबसे ज्यादा ध्यान इस बात पर भी देना है कि जो लोग छींक रहे हैं उनसे भी आपको दूरी बनाकर रखनी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल     ही में इस पर एक बार फिर से  सभी लोगों को सतर्क रहने  की सलाह दी है। दरअसल सर्दी जुकाम से मिलते-जुलते लक्षण कोरोना वायरस के भी होते हैं, ऐसे में जब कोई आपके आस-पास छींक रहा हो तो उससे दूर हट जाएं और अपने मुंह को ढकने की कोशिश करें।
  न खाएं अंडा और मांसअंडा और मांस को न खाने की सलाह बहुत पहले से दी जा रही है लेकिन लोगों के द्वारा इसे अभी भी नजरअंदाज किया जा रहा है।  कोरोना वायरस भारत में अपने पैर पसार रहा है तो कोशिश करें कि पूरी तरह से अंडे और मांस से दूरी बना लें। ऐसा करने से आप कोरोना वायरस ककोरोना वायरस विश्व रूपी स्वास्थ्य समस्या बन चुका है। ऐसे में वैज्ञानिकों ने अध्ययन करके यह पता लगाया है कि यदि हम दरवाजे और खिडकियों को खुला रखकर ताजी हवा में सांस लें, तो इससे कोरोना वायरस की चपेट में आने से बचा जा सकता है। साथ ही सिंगापुर में चीफ हेल्थ साइंटिस्ट चोर्थ चुहान ने भी ऐसा करने की सलाह दी है, उनके अनुसार ताजी हवा में कोरोना वायरस फैल नहीं पाते हैं। कोशिश करें कि आपके बेडरूम और गेस्ट रूम की दरवाजे खिड़कियां खुली रहें।

कोरोना से बचने के लिए क्या करें और क्या नहीं

भारत सरकार ने अपनी ओर से अडवाइजरी जारी कर लोगों को कोरोना से सुरक्षा के उपाय बताए हैं।

​कमरे को गर्म रखें

कमरे को गर्म रखने का मतलब है कि आपके कमरे का तापमान करीब 30 डिग्री सेल्सियस के ऊपर ही रहे। National Center for Biotechnology Information (NCBI) के द्वारा हाल ही में किए गए रिसर्च के अनुसार कमरे का तापमान गर्म रखने से इस वायरस के संक्रमण का खतरा भी कम हो जाता है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के अलावा कई वैज्ञानिकों के द्वारा अभी तक कहा जा चुका है कि गर्मी आने पर यह संक्रमण काफी हद तक खत्म हो जाएगा। इसलिए कोशिश करें कि एसी आदि को कम ही चलाएं और कमरे को गर्म रखें। 

शनिवार, 1 अगस्त 2020

Shree Ram Mandir Nirman

 राम मंदिर (Ram Mandir) निर्माण को लेकर अयोध्या में आज श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की अहम बैठक हुई. इस बैठक में मंदिर के भूमि पूजन की तारीखों के साथ मॉडल में बदलाव पर भी बड़ा फैसला लिया गया. जानकारी के मुताबिक, राम मंदिर की ऊंचाई और आकार में बदलाव का निर्णय लिया गया है. राम मंदिर का निर्माण जिस दिन से शुरू होगा, उस दिन से करीब 3 या साढ़े तीन साल का वक्त लगेगा. इसके अलावा मंदिर निर्माण के लिए समाज से धन संग्रह किया जाएगा.


राम मंदिर ट्रस्ट के सदस्य कामेश्वर चौपाल ने बताया कि प्रस्तावित राम मंदिर मॉडल 128 फीट ऊंचा है, जिसे बढ़ाकर 161 फीट ऊंचा करने का फैसला लिया गया है. इसके अलावा गर्भगृह के आसपास अब 5 गुंबद बनाए जाएंगे, जबकि पहले तीन गुंबद बनने थे.

 मंदिर का मॉडल

राम मंदिर ट्रस्ट के सदस्य कामेश्वर चौपाल ने कहा कि राम मंदिर प्रारूप के भू-तल वाले हिस्सों के पत्थरों की तराशी पूरी हो चुकी है. राम मंदिर के भू-तल में सिंहद्वार, गर्भगृह, नृत्यद्वार, रंगमंडप बनेगा. वहीं प्रथम तल पर राम दरबार की मूर्तियों को स्थान दिया जाएगा. यही नहीं प्रस्तावित राम मंदिर के मॉडल के मुताबिक मंदिर में 24 दरवाजों का चौखट होगा, जो कि संगमरमर के पत्थरों से बनाया जाएगा. इन संगमरमर के पत्थरों पर राजस्थान के मकराना में काम चल रहा है.

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उन्होंने बताया कि प्रस्तावित राम मंदिर की लंबाई 268 फीट, चौड़ाई 140 फीट और ऊंचाई-128 फीट तय की गई हैइसके अलावा मंदिर में 212 खंभे होंगेजिसमें से पहली मंजिल में 106 खंभे और दूसरी मंजिल में 106 खंभे बनाए जाएंगेप्रत्येक खंभे में 16 मूर्तियां होंगी और मंदिर में दो चबूतरे भी होंगे


चारों दिशाओं में होंगे द्वार
कामेश्वर चौपाल ने बताया कि मंदिर में 4 द्वार होंगे जो कि चारों दिशाओं में खुलेंगे. एक द्वार टेढ़ी बाजार, दूसरा द्वार क्षीरेश्वररनाथ मंदिर की तरफ, तीसरा द्वार गोकुल भवन और चौथा द्वार- दशरथ महल की तरफ से (ये मुख्य रास्ता होगा) खुलेगा, इसके अलावा भूतल पर रामलला, प्रथम तल पर राम दरबार होगा. खास बात यह है कि इसके लिए सीमेंट और मौरंग का इस्तेमाल नहीं  किया जाएगा.

राम मंदिर परिसरजानकारी के मुताबिक, राम मंदिर के प्रांगण में रामकथा कुंज 45 एकड़ में बनेगा. यहां 125 मूर्तियां भगवान राम के जीवन काल की बनाई जाएंगी. जन्म काल से लेकर लंका विजय और राजगद्दी तक की मूर्तियों का लगाया जाएगा. इसके अलावा मंदिर परिसर में धर्मशाला और गौशाला भी बनाया जाएगा|

कामेश्वर चौपाल ने कहा कि पीएम मोदी अयोध्या आएंगे.  5 अगस्त को पीएम मोदी के हाथों ही मंदिर निर्माण का शिलान्‍यास किया जाएगा. पीएम को निवेदन कर दिया गया है. तिथियों का सुझाव दे दिया गया है, आखिरी निर्णय PMO करेगा.

शनिवार, 13 जून 2020

स्वदेशी अपनाओ देश बचाओ...

Swadeshi Apnao Desh Bachao 


Swadeshi Apnao Desh Bachao Naare – किसी देश का विकास उसकी आत्मनिर्भरता पर होता है, और कोई भी देश तभी आत्मनिर्भर बन सकता है, जब उसकी आवश्कयता की पूर्ति के लिए उसे दुसरे देशो पर निर्भर नही रहना पड़ता है, बल्कि उसकी आवश्कयताओ की पूर्ति के सामान उसके देश में ही बनती हो, या मिल जाती हो,

तो चलिए इस पोस्ट में  स्वदेशी को बढ़ावा देने के लिए स्वदेशी अपनाओ देश बचाओ पर नारे, Swadeshi Apnao Desh Bachao Naare Nare Slogan शेयर कर रहे है, जिसे आप लोगो को स्वदेशी के Naare Slogan, आत्मनिर्भर बने भारत नारे के जरिये लोगो जागरूक कर सकते है.

आओ करे प्रण, भारत बने आत्मनिर्भर

आत्मनिर्भरता को बढ़ाये, भारत को स्वदेशी बनाये

आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना, भारत को स्वदेशी बनाना

Swadeshi Apnao Desh Bachao Naare Slogan in Hindiस्वदेशी अपनाओ देश बचाओ

शुक्रवार, 22 मई 2020

जीवन का आरंभ



**विष्णु पुराण के अनुसार जीवन का आरम्भ: विस्तृत वर्णन**

विष्णु पुराण हिंदू धर्म के अठारह महापुराणों में से एक है, जो भगवान विष्णु की महिमा और सृष्टि के आरम्भ का वर्णन करता है। इसमें ब्रह्मांड की उत्पत्ति, देवताओं, ऋषियों और अन्य पौराणिक कथाओं का वर्णन मिलता है। 

 सृष्टि की शुरुआत
विष्णु पुराण के अनुसार, सृष्टि के आरंभ में केवल विष्णु ही अस्तित्व में थे। वे अनंत सागर में शेषनाग पर योगनिद्रा में शयन कर रहे थे। इस स्थिति को 'योगनिद्रा' कहा जाता है, जो सृजनात्मक ऊर्जा के संग्रहण की स्थिति है।

 ब्रह्मा का जन्म
भगवान विष्णु के नाभि से एक कमल का फूल प्रकट हुआ। इस कमल के पुष्प पर ब्रह्मा जी प्रकट हुए। ब्रह्मा जी को सृष्टि का रचयिता माना जाता है। भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी को सृष्टि की रचना का कार्य सौंपा।

 सृष्टि की रचना
ब्रह्मा जी ने सबसे पहले चार सनतकुमारों की रचना की: सनक, सनन्दन, सनातन, और सनत्कुमार। ये सभी ब्रह्मचारी रहे और संसार की रचना में भाग नहीं लिया। 

इसके बाद, ब्रह्मा जी ने रुद्र की रचना की, जो भगवान शिव के रूप में जाने जाते हैं। रुद्र को सृष्टि के विनाश का कार्य सौंपा गया।

 मनु और प्रजापति
ब्रह्मा जी ने फिर मनु और शतरूपा की रचना की। मनु को मानव जाति का प्रथम पुरुष और शतरूपा को प्रथम स्त्री माना जाता है। इनसे मानव जाति की उत्पत्ति हुई।

इसके बाद ब्रह्मा जी ने विभिन्न प्रजापतियों की रचना की, जिन्होंने जीवों और अन्य प्राणियों की सृष्टि की। प्रजापतियों ने अपने तप, यज्ञ और संतानों के माध्यम से विभिन्न जीवों और मानव जाति की उत्पत्ति की।

 सृष्टि का विस्तार
प्रजापतियों ने विविध योनियों (प्रजातियों) की रचना की। इससे संपूर्ण जीव जगत की उत्पत्ति हुई। देवता, असुर, गंधर्व, यक्ष, राक्षस, पशु, पक्षी, और सभी प्रकार के जीव-जंतु प्रजापतियों के माध्यम से सृष्टि में आए।

 ब्रह्मांड का संचालन
भगवान विष्णु सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में माने जाते हैं। वे इस संसार के संचालन और संरक्षण का कार्य करते हैं। भगवान विष्णु के विभिन्न अवतार, जैसे राम, कृष्ण, और अन्य, ने समय-समय पर पृथ्वी पर आकर धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश किया।

 निष्कर्ष
विष्णु पुराण में सृष्टि की रचना और जीवन के आरम्भ का वर्णन गहन और व्यापक रूप में किया गया है। यह पुराण न केवल सृष्टि के वैज्ञानिक और दार्शनिक दृष्टिकोण को प्रस्तुत करता है, बल्कि इसमें धार्मिक और आध्यात्मिक तत्व भी शामिल हैं। भगवान विष्णु की इच्छा और ब्रह्मा जी के सृजनात्मक कार्यों के माध्यम से सृष्टि का आरम्भ हुआ और यह पुराण हमें जीवन के रहस्यों को समझने में सहायता प्रदान करता है।

रविवार, 3 मई 2020

सनातन धर्म



सनातन धर्म, जिसे हिंदू धर्म के रूप में भी जाना जाता है, दुनिया के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। यह धर्म भारतीय उपमहाद्वीप में उत्पन्न हुआ और लाखों वर्षों से लोगों द्वारा मान्यता प्राप्त है। 

### सनातन धर्म के मुख्य सिद्धांत

1. **वेद**: वेद सनातन धर्म के सबसे प्राचीन और पवित्र ग्रंथ हैं। इन्हें चार भागों में विभाजित किया गया है - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद।

2. **धर्म**: यह कर्तव्य, नैतिकता और सही आचरण पर आधारित है। धर्म जीवन के सभी पहलुओं को समाहित करता है, जिसमें व्यक्तिगत, सामाजिक और आध्यात्मिक कर्तव्यों का पालन शामिल है।

3. **कर्म**: यह सिद्धांत कहता है कि हर व्यक्ति का प्रत्येक कार्य उसके भविष्य को प्रभावित करता है। अच्छे कर्म अच्छे फल लाते हैं और बुरे कर्म बुरे परिणाम देते हैं।

4. **पुनर्जन्म**: सनातन धर्म में विश्वास है कि आत्मा अमर है और मृत्यु के बाद पुनर्जन्म लेती है। यह चक्र तब तक चलता रहता है जब तक आत्मा मोक्ष प्राप्त नहीं कर लेती।

5. **मोक्ष**: यह अंतिम लक्ष्य है जिसमें आत्मा संसार के जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाती है और परमात्मा के साथ एक हो जाती है।

### पूजा और अनुष्ठान

सनातन धर्म में विभिन्न प्रकार की पूजा और अनुष्ठान होते हैं। इनका पालन करने से व्यक्ति आध्यात्मिक शांति और भगवान की कृपा प्राप्त करता है। प्रमुख अनुष्ठानों में ध्यान, योग, यज्ञ, व्रत और तीर्थ यात्रा शामिल हैं।

### देवी-देवता

सनातन धर्म में अनेक देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। प्रत्येक देवता एक विशेष शक्ति या गुण का प्रतिनिधित्व करता है। प्रमुख देवी-देवताओं में भगवान शिव, भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी, देवी दुर्गा, भगवान गणेश और भगवान कृष्ण शामिल हैं।

### संस्कृति और परंपरा

सनातन धर्म केवल एक धर्म ही नहीं, बल्कि एक जीवन जीने का तरीका है। यह संस्कृति, परंपरा, और नैतिक मूल्यों का एक समृद्ध संकलन है। त्योहार, संगीत, नृत्य और साहित्य इस धर्म का अभिन्न हिस्सा हैं, जो इसे जीवंत और गतिशील बनाते हैं।

सनातन धर्म का प्रभाव केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे विश्व में फैल चुका है। इस धर्म की शिक्षाएं और सिद्धांत आज भी लोगों को प्रेरित और मार्गदर्शित करते हैं।

गीता सार

भगवद प्राप्ति में ८ प्रकार के विग्ना आते हैं उनसे बचें तो भगवदप्राप्ति सहज हो जाये …-
१ आलस्य : अच्छा काम करने में आलस्य , परमार्थ में ढील करना , जप-ताप में ढील करना , ईश्वर प्राप्ति के साधन में चलो बाद में करेंगे …
२ विलासिता : सम्भोग से १० प्रकार की हानि |
३ प्रसिद्धि की वासना : आदमी को बहिर्मुख केर देती है , प्रसिद्धि की वासना में आदमी न करने जैसे काम केर लेता है …
४  मन , बढ़ाई , इर्ष्या : अपने से जादा कोई सुखी है , अपने से जादा कोई समजदार है अपने से ज्यादा  किसी की प्रसिद्धि है तो उसको देख कर मन में जो इर्ष्या होती है वो भी साधक को नहीं आने देनी चाहिए …
५ अपने में गुरुभाव की स्थापना करना : मै जानकार हूँ , मै बड़ा गुरु हूँ , मै बड़ा श्रेष्ठ हूँ , अपने में गुरु मन बड़ा भाव धारण करना …
६ बाहरी दिखावा : घर का , धन का , सत्ता का , बुद्धिमत्ता का दिखावा ….
७ परदोष चिंतन : किसी के दोष देख कर अपने को दोषी क्यों बनाना
८ संसारी कार्यों की अधिकता : विश्रांति भी छूट जाती है , ध्यान भजन भी छूट जाती है और चित्त को भगवान का आराम पके भगवद रस पाना भियो छुट जाता है ..

शुक्रवार, 27 मार्च 2020

Hindu puran

Hindu purano ke anusar pralay ke prakar


कितने प्रकार की है प्रलय : हिन्दू पुराणों में प्रलय के चार प्रकार बताए गए हैं- 1.नित्य, 2.नैमित्तिक, 3.द्विपार्थ और 4.प्राकृत। एक अन्य पौराणिक गणना अनुसार यह क्रम है 1.नित्य, 2.नैमित्तक, 3.आत्यन्तिक और 4.प्राकृतिक प्रलय। 
 
1.नित्य प्रलय : वेदांत और पुराणों के अनुसार जीवों की नित्य होती रहने वाली मृत्यु को नित्य प्रलय कहते हैं। जो जन्म लेते हैं उनकी प्रतिदिन की मृत्यु अर्थात प्रतिपल सृष्टी में जन्म और मृत्य का चक्र चलता रहता है।
कई तरह की प्राकृतिक आपदाओं को भी नित्य प्रलय के अंतर्गत रखा जाता है। यह छोटी-मोटी जल प्रलय भी हो सकती है और तूफान भी। प्रत्येक मौसम या ऋतु के बदलाव के वक्त यह प्रलय होती रहती है। व्यक्ति के भीतर भी नित्य प्रलय चलती रहती है। इस वक्त धरती और ब्रह्मांड में प्रतिसेकंड नित्य प्रलय जारी है। 
 
2.आत्यन्तिक प्रलय : आत्यन्तिक प्रलय योगीजनों के ज्ञान के द्वारा ब्रह्म में लीन हो जाने को कहते हैं। अर्थात मोक्ष प्राप्त कर उत्पत्ति और प्रलय चक्र से बाहर निकल जाना ही आत्यन्तिक प्रलय है। मृत्य से बढ़कर है मोक्ष।
 
3.नैमित्तिक प्रलय : वेदांत के अनुसार प्रत्येक कल्प के अंत में होने वाला तीनों लोकों का क्षय या पूर्ण विनाश हो जाना नैमित्तिक प्रलय कहलाता है। पुराणों अनुसार जब ब्रह्मा का एक दिन समाप्त होता है, तब विश्व का नाश हो जाता है। एक कल्प को ब्रह्मा का एक दिन माना जाता है। इसी प्रलय में धरती या अन्य ग्रहों से जीवन नष्ट हो जाता है।
 
नैमत्तिक प्रलयकाल के दौरान कल्प के अंत में आकाश से सूर्य की आग बरसती है। इनकी भयंकर तपन से सम्पूर्ण जलराशि सूख जाती है। समस्त जगत जलकर नष्ट हो जाता है। इसके बाद संवर्तक नाम का मेघ अन्य मेघों के साथ सौ वर्षों तक बरसता है। वायु अत्यन्त तेज गति से सौ वर्ष तक चलती है। उसके बाद धीरे धीरे सब कुछ शांत होने लगता है। तब फिर से जीवन की शुरुआत होती है।
 
अगले पन्ने पर जानिये कि कैसे प्राकृत प्रलय ही असल में प्रलय है...

4.प्राकृत प्रलय : ब्राह्मांड के सभी भूखण्ड या ब्रह्माण्ड का मिट जाना, नष्ट हो जाना या भस्मरूप हो जाना प्राकृत प्रलय कहलाता है। वेदांत और पुराणों के अनुसार प्राकृत प्रलय अर्थात प्रलय का वह उग्र रूप जिसमें तीनों लोकों सहित महतत्व अर्थात प्रकृति के पहले और मूल विकार तक का विनाश हो जाता है और प्रकृति भी ब्रह्म में लीन हो जाती है अर्थात संपूर्ण ब्रह्मांड शून्यावस्था में हो जाता है। न जल होता है, न वायु, न अग्नि होती है और न आकाश और ना अन्य कुछ। सिर्फ अंधकार रह जाता है।
पुराणों अनुसार प्राकृतिक प्रलय ब्रह्मा के सौ वर्ष बीतने पर अर्थात ब्रह्मा की आयु पूर्ण होते ही सब जल में लय हो जाता है। कुछ भी शेष नहीं रहता। जीवों को आधार देने वाली ये धरती भी उस अगाध जलराशि में डूबकर जलरूप हो जाती है। उस समय जल अग्नि में, अग्नि वायु में, वायु आकाश में और आकाश महतत्व में प्रविष्ट हो जाता है। महतत्व प्रकृति में, प्रकृति पुरुष में लीन हो जाती है।
 
उक्त चार प्रलयों में से नैमित्तिक एवं प्राकृतिक महाप्रलय ब्रह्माण्डों से सम्बन्धित होते हैं तथा शेष दो प्रलय देहधारियों से सम्बन्धित हैं।
 
प्रलय काल में पृथ्वी जल में, जल अग्नि में, अग्नि वायु में और वायु आकाश में लीन होकर पुनः बिंदु रूप में आ जाती है। यही संकोच और विस्तार प्रलय और सृजन है तथा प्राणि-मात्र में जन्म और मृत्यु है। बिंदु रूप ब्रह्म वामाशक्ति है क्योंकि वही विश्व का वमन (यानी उत्पन्न) करती है-
 
ब्रह्म बिंदुर महेशानि वामा शक्तिर्निगते....
 
इस तरह ब्रह्मा के 15 वर्ष व्यतीत होने पर एक नैमित्तिक प्रलय होता है- फिर ब्रह्मा के 100 वर्ष व्यतीत होने पर तीसरा प्रलय होता है- जिसे द्विपार्थ कहा गया है। ब्रह्मा के 50 वर्ष को एक परार्ध कहा गया है। इस तरह दो परार्ध यानी एक महाकल्प। ब्रह्मा का एक कल्प पूरा होने पर प्रकृति, शिव और विष्णु की एक पलक गिर जाती है। अर्थात उनका एक क्षण पूरा हुआ, तब तीसरे प्रलय द्विपार्थ में मृत्युलोक में प्रलय शुरू हो जाता है।
फिर जब प्रकृति, विष्णु, शिव आदि की एक सहस्रबार पलकें गिर जाती हैं तब एक दंड पूरा माना गया है। ऐसे सौ दंडों का एक दिन 'प्रकृति' का एक दिन माना जाता है- तब चौथा प्रलय 'प्राकृत प्रलय' होता है- जब प्रकृति उस ईश्वर (ब्रह्म) में लीन हो जाती है। अर्थात संपूर्ण ब्रह्मांड भस्म होकर पुन: पूर्व की अवस्था में हो जाता है, जबकि सिर्फ ईश्वर ही विद्यमान रह जाते हैं। न ग्रह होते हैं, न नक्षत्र, न अग्नि, न जल, न वायु, न आकाश और न जीवन। अनंत काल के बाद पुन: सृष्टि प्रारंभ होती है।