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शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019

धर्मो रक्षति रक्षितः



 "धर्मो रक्षति रक्षितः" (Dharmo rakshati rakshita) का अर्थ है "धर्म उसकी रक्षा करता है जो धर्म की रक्षा करता है।"

### विवरण:
1. **अर्थ**: यह वाक्य यह बताता है कि जो व्यक्ति धर्म का पालन करता है और उसके सिद्धांतों की रक्षा करता है, धर्म भी उसकी रक्षा करता है। इसका मतलब है कि धर्म और नैतिकता का पालन करने वाले व्यक्ति की रक्षा खुद धर्म करता है।

2. **मूल**: यह विचार हिंदू दर्शन में गहराई से निहित है और इसे मनुस्मृति जैसे प्राचीन धर्मशास्त्रों में पाया जा सकता है। यह व्यक्तियों और ब्रह्मांडीय नैतिक व्यवस्था के बीच पारस्परिक संबंध को रेखांकित करता है।

3. **व्याख्या**:
   - **व्यक्तिगत आचरण**: सत्यनिष्ठा, ईमानदारी, और नैतिक आचरण के साथ जीवन जीने से व्यक्ति के चारों ओर एक सुरक्षा कवच बन जाता है। यह सुरक्षा केवल शारीरिक नहीं बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक भी होती है।
   - **सामाजिक प्रभाव**: एक ऐसा समाज जो धर्म का पालन करता है, अपने सदस्यों के लिए न्याय, समरसता और शांति सुनिश्चित करता है। जब व्यक्ति सामूहिक रूप से धर्म का पालन करते हैं, तो यह एक सुव्यवस्थित और स्थिर समाज की ओर ले जाता है।

4. **प्रयोग**:
   - **व्यक्तिगत स्तर**: व्यक्ति को अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाना चाहिए, नैतिक मानकों को बनाए रखना चाहिए, और नैतिक सिद्धांतों के आधार पर निर्णय लेने चाहिए।
   - **सामुदायिक स्तर**: समुदाय में धार्मिकता और नैतिकता की संस्कृति को बढ़ावा देना एक मजबूत और लचीला सामाजिक ढांचा बनाने में मदद करता है।

5. **आज की प्रासंगिकता**: आधुनिक समय में, इस सिद्धांत को जीवन के विभिन्न पहलुओं में लागू किया जा सकता है, जैसे शासन, कानून, व्यक्तिगत संबंध, और पेशेवर नैतिकता। यह याद दिलाता है कि न्याय और नैतिकता का पालन करना व्यक्तिगत और सामूहिक कल्याण के लिए आवश्यक है।




यह वाक्य धर्म और संरक्षण की पारस्परिक और परस्पर निर्भर प्रकृति को रेखांकित करता है, और व्यक्तियों को अपने लाभ और समाज के लाभ के लिए सदाचारी जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित करता है।


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